जनता चाहती तेजी से काम करने वाला आयुर्वेद

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आपमे से कई लोगो ने मेरी ही तरह शीघ्र असरकारक स्वर्ण, रजत, ताम्र और लोह जैसी धातुओ और हीरक, मोती, प्रवाल जैसे द्रव्यो से बनी आयुर्वेदिक रस औषधियो का सेवन किया ही होगा और अवश्य लाभांवित भी हुये होंगे.  किंतु कोराना काल मे मन मे एक विचार आता है कि सरकारे अरबो रुपये खर्च कर साइड इफेक्ट देने वाली ऐलोपथिक दवाओ को विदेशो से मगँवा सकती है, तो वो क्या कुछ मरीजो पर स्वर्ण युक्त आयुर्वेदिक दवाओ या रस औषधियो का प्रायोग नही कर सकती ? क्या ऐसा कोइ ट्रायल कही चल रहा है या केवल थोडा सा महंगा होने के कारण ऐसा कोइ ट्रायल नही चलना चाहिये ? आज भी वही बजट को लेकर रोना क्यु?

यह प्रश्न तो उठेगा ही कि आयुर्वेद के बडे संस्थानो मे से कितनो मे कोराना या ब्लेक फंगस जैसी कई अन्य घातक बिमारीयो पर स्वर्ण युक़्त दवाओ द्वारा उपचार किया जा रहा है? 

कब तक आयुर्वेदिक दवाओ के नाम पर केवल काढा या कुछ गिनी चुनी सस्ती घरेलु दवाओ को ही दुनिया के सामने रखा जाता रहेगा और प्रभावशाली दवाओ को येन केन प्रकरेण दुस्प्रचारित कर बदनाम किया जाता रहेगा.  

जब आपको शीघ्र चिकित्सा की आवश्यकता हो,  रोगी गम्भीर हो, अल्प बल वाला हो, बालक या स्त्री या  वृद्ध अथवा अल्प सत्व वाला हो, अथवा सुकुमार प्रकृति वाला हो, अथवा जब अल्प मात्रा मे औषधी प्रयुक्त कर सकते हो तो ऐसी परिस्थितियो मे रस औषधिया अमृत के समान कार्य कर सकती है, यह बात तो सामान्य आयुर्वेद चिकित्सक भी जानता है, फिर इस विषय पर आयुर्वेद विशेषज्ञ (एम. डी. / एमएस. इन आयुर्वेद) या आयुर्वेद परमविशेषज्ञ (पी. एच. डी. इन आयुर्वेद)  की चुप्पी खलती क्यु नही है ?

और जहा तक कुछ लोगो द्वारा सोने के महंगा होने की बात का रोना है, तो वो लोग यह जानले कि जान (life) से कीमती कुछ भी नही है, आप आह्वान तो करो, भारत की जनता अपने लोगो कि जान बचाने को सोना भी न्योछावर कर सकती है.

कई प्राइवेट चिकित्सक स्वर्ण युक्त रस औषधिया को प्रयोग कर उनके गुणगान कर रहे है और आयुष मंत्रालय उनके क्लेम पर आपत्ति कर रहा है!  कही यह रेम्डेसेवीर, एच.सी.क्यु., आइवरमेक्टीन या प्लाज्मा थेरेपी के बारे मे रिसर्च करके एलोपैथिक संस्थान जैसा बयान देते है उसकी नकल तो नही है. आप अपनी टाईम टेस्टेड दवा के बारे मेे बिना किसी रिसर्च के पोजिटिव बात नही बोल सकते तो आपको नेगेटिव बाते भी नही बोलनी चाहिये

आयुर्वेद के संस्थान अपनी रस औषधियो पर रिसर्च करने मे बाधक कारणो को फाइंड आउट करके सरकार के सामने तो रख ही सकते है. ऐसे सिवियर रोगी जिन पर एलोपथ  काम नही कर पा रही है वहा तो आयुर्वेद की रस औषधियो का प्रयोग करके देखा जा सकता है. यह सब सरकारी स्तर पर होना चाहिये, किंतु होता ही नही है . जिसका मुख्य कारण है कि सरकार यह काम भी सस्ते मे कराना चाहती है और सुरक्षा, सम्मान और समान वैतन देना नही चाहती. वो सोचती है कि सामान्य आयुर्वेद चिकित्सक (केवल बी. ए. एम. एस.) से ही काम चला लिया जाये उसको भी ¼ सेलेरी पर रखा जाये, आयुर्वेद विशेषज्ञ (एम. डी. / एमएस. इन आयुर्वेद) या आयुर्वेद परमविशेषज्ञ (पी. एच. डी. इन आयुर्वेद)  क्यु रखे? जब किसी आयुर्वेद चिकित्सक को सुरक्षा-सम्मान और समान वैतन नही मिलेगा तो जनता तो वास्तविक आयुर्वेद कहा से मिलेगा. कही लोग तो यह भी कहते है कि वास्तव मे जनता को सस्ता और बचा खुचा आयुर्वेद मिल रहा है.

यहा तक कि कही पढे लिखे लोगो को भी आयुर्वेदविशेषज्ञ (एम. डी. / एमएस. इन आयुर्वेद) या परमविशेषज्ञ (पी. एच. डी. इन आयुर्वेद) सेवाओ का ज्ञान ही नही है. आयुर्वेद विशेषज्ञ के बारे मे जानकारी के अभाव मे अधिकारियो द्रवारा भी कई बार अच्छे आयुर्वेद विशेषज्ञो को जनता से दूर कर दिया जाता है या कई बार उनको अचिकित्सिय अन्य कार्यो मे लगा दिया जाता है, जहाँ वो अपने विशेषज्ञत्व को धार नही दे पाते. कई बार यह भी देखने मे आया है कि कुछ आयुर्वेद विशेषज्ञ या आयुर्वेद परमविशेषज्ञ भी अपने ज्ञान का समुचित सम्मान और वैतन नही मिलने के कारण अपने विशेषज्ञत्व को धार नही दे पाते है. जनता को आयुर्वेद चिकित्सको, विशेषज्ञो और परम विशेषज्ञो की सेवा मिलती रहे इस बारे मे अधिक से अधिक जनता को जागरुक किया जाना चाहिये. जनता जब तक आयुर्वेदज्ञो के साथ हो रहे भेदभाव को जानेगी नही तब तक वो आयुर्वेदज्ञो को ही गलत समझती रहेगी.

जनता को वास्तविकता बताना जरुरी है कि जो स्वर्णआयुर्वेद राजाओ की चिकिसार्थ प्रयुक्त होता था वैसा ही भारत की जनता को कभी मिलेगा? कम से कम अभी की परिस्थितियो मे तो यह सम्भव नही लग रहा है. भविष्य मे ही सही अगर ऐसा हुआ, तो भारत की जनता को भी राजाओ जैसा दीर्घ और स्वस्थ जीवन जीने का आनन्द आयेगा ऐसी पूरी सम्भावनाऐ है.

कुछ लोग तो यहाँ तक कहते है कि पेकेजिंग और दवाओ को सुरक्षित रखने के उपायो पर तो आयुर्वेद मे कुछ खर्च ही नही करने का जैसे प्रण ले रखा हो. आज भी बडे बडे संस्थानो मे भी कागज की पुडिया मे चुर्ण या कुछ गोलिया दे रहे है,  ये लोग स्वर्ण औषधियो को बिना अच्छी  पेकेजिंग के खराब कर देंगे. क्या नमी से बचाने हेतु पाउच या ब्लिस्टर पैकिंग नही हो सकती ? क्या मलहर या मलह्म की ट्यूब पेकिंग नही हो सकती? 

This Post Has 10 Comments

  1. Arun kotadia

    Very nice article
    Very true about aayurveda

  2. Arun kotadia

    Very nice article
    There must be deep research

  3. Rajesh

    डॉक्टर साहब आप बिल्कुल सही हो, आपने अपना विचार व्यक्त किया तो सही परंतु रसोषधीऔं के महान ज्ञाताओं को यह विचार भी नही आया । सरकार तो तब सोचेगी।

  4. Dibakar Ray

    True sir🙏🙏

  5. Sanjay C Gandhi

    Very informative..well narrated sir.

  6. Dr.Deepak Rajpurohit

    एक दम सटीक विश्लेषण किया ,सर आपने ।

  7. Vd. Sunanda jain

    Sir u r rights I am using so many Rasaushdhi and getting very good results

  8. JAYESH DOSHI

    सरजी आपकी बात बिलकुल सही है। सबसे पहले आयुर्वेद के बारे मे सही ज्ञान लोगों में फैलाना जरुरी है। लोगो के पास सही जानकारी होगी तो अपनेआप सब कुछ सुरु होने लग जायेगा। और सरकार को भी लाइन पर आकर सही कदम उठाने ने पडेंगे।
    जय धनवंतरि जय आयुर्वेद।

  9. BrijRaj Malav

    आपका लेख आयुर्वेद की लिए गंभीर विचारनीय विषय है,रसओषधियो का प्रयोग आयुर्वेद की उच्च संस्थाओ को करना चाहिए था,जिनमें covid सेंटर सन्चालित हुए है, पूरा प्रस्तुतिकरन सरकार के सामने करना चाहिए था,आयुर्वेद संस्थानों को अपने कार्य पर खरा उतरना चाहिये था।

  10. Deepti Jain

    Bahut sahi likha aapne…bhartiya chikitsa paddhti apne hi desh m ignore ki ja rahi h.. aaj k parivesh m jaruri h ise aage badhana..

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