ऐसा नही है कि आयुर्वेद का जो स्वरूप वर्षो पुर्व था, वो ही आज भी है। आयुर्वेद में विकास तब भी हो रहा था और आज भी चल रहा है। बस कभी इस विकास की गति अधिक थी, तो कभी कम। अर्थात आयुर्वेद मे युगानुरूप परीवर्तन तो हुये किंतु मूल सिद्धांतो मे छेड्छाड किये बिना ।
कुछ लोग आयुर्वेद के विकास मे तब भी बाधक थे, तो कुछ आज भी बाधक बने बेठे है। ऐसे लोग यदा- कदा अपने षडयंत्रो से आयुर्वेद को नीचा दिखाने से भी नही चूकते है। पहले ये लोग आयुर्वेद के प्रति लोगो को भ्रामक जानकारिया देकर, अफवाहे फेला कर आयुर्वेद को गलत साबित करने की कोशिश करते थे। समय-समय पर भ्रम फेलाने की कोशिशे होती रही, किंतु आयुर्वेद लोगो के जीवन मे रच बस गया है तो उसकी एक मुख्य वजह वैद्यो द्वारा निस्वार्थ भाव से की जाने वाली सेवा भी रही है।
कहते है आवश्यकता अविष्कार की जननी है अर्थात जब एलोपैथिक मेंडीसिन से लोग थक गये और पुनः पुनः नये रोगो के प्रादुभाव से जनता में असंतोष उत्पन्न होने लगा, तो लोग ने अपनी घर की चिकित्सा पद्धत्ती आयुर्वेद की तरफ आना शुरू कर दिया। और यदाकदा होने वाले रोग जब एपेडेमिक अर्थात जनोपदोध्वंश करने लगे तो यह युग परिवर्तन का संकेत लगने लगा ।
ऐसे समय में आयुर्वेद चिकित्सको ने इस बदलाव को स्वीकार करते हुये अपनी जिम्मेवारीयो को निभाना शुरू किया जिसका परीणाम हमे एडवांस आयुर्वेदा के रूप में देखने को मिलता है। जी. एम. पी., आयुर्वेदिक नेत्र चिकित्सालय, स्वतंत्र पंचकर्म सेंटर्स में आधुनिक तकनिको का युक्तिपुर्वक इस्तेमाल एवं न्यूनतम एलोपेथी-अधिकतम आायुर्वेद इस सूत्र का प्रयोग कर आज के आयुर्वेद शल्य चिकित्सक शल्यकर्म कर रहे है । आयुर्वेद शल्य चिकित्सक शल्य कर्म पहले भी कर रहे थे किंतु इसी बात को भारत सरकार द्वारा राजपत्र मे प्रकाशित कर भारतीय शल्य तंत्र का मान बढाया गया।
सम्पूर्ण विश्व मानवता के रक्षक आयुर्वेद की ओर आशा भरी निगाहो से देख रहा है । आयुर्वेद चिकित्सक सभी क्षेत्रो मे अपनी सेवाए देने को और चुनोतियो को टक्कर देने के लिये तैयार खडे है । ऐसे मे आयुर्वेद चिकित्सको को अवसर देने के साथ- साथ उनकी समस्याओ का निराकरण करना भी रोगीयो की सेवा करने जैसा ही है।
देशभर में एम.डी. के लगभग 1000 से ज्यादा स्कोलर प्रतिवर्ष अनेको विषयों पर खोज कर रहे है, लेकिन उनकी खोज जनता के जितनी उपयोग मे आनी चहिये, उतनी नही आ पाती है। मेरे कुछ सुझाव है, जिनसे आयुर्वेद की रिसर्च और अधिक जनोपयोगी बन पायेगी।
ज्ञान चोरी से सुरक्षा की गारंटी – सामान्यता आयुर्वेद के ज्ञान को चुरा कर नये रंग रोगन लगा कर दुनिया के सामने प्रस्तुत कर दिया जाता है, अयुर्वेद के ग्र्ंथो को रेफेरेंस तक नही दिया जाता है।
एक रूपता हेतु – केन्द्रिय स्तर पर प्री. पीजी (एम.डी.) टेस्ट का आयोजन होने लगे है ये अच्छा कार्य है, इसे और प्रेक्टिकल बनया जाये जैसे एम. डी. मे रिसर्च टोपिक केन्द्रिय स्तर पर दिये जाये। नीट मे फोर्म भरते समय ही केंडिडेट का एरिया ओफ इन्ट्रेस्ट की जानकारी ले लेनी चाहिये
सभी सम्भावित रिसर्च सबजेक्ट आनलाइन हो, जिन्हे कोई भी देख सके।
रिसर्च टोपिक पर अन्य क्षेत्र के लोगो से भी सुझाव लिये जाये।
औषध वितरण या विपणन का केन्द्रिय स्तर पर नियंत्रण हो एवं आयुर्वेदिक मेडीकल स्टोर संचालन हेतु न्यूनतम योग्यता डिप्लोमा इन आयुर्वेदा फार्मेसी रखी जाये।
बी.ए.एम. एस. सेलेबस में एडवांस आयुर्वेद एक विषय के रूप में रखा जाये।
आयुर्वेद को मुख्य धारा मे लाने के लिये कक्षा 8, 9, 10, 11, 12 मे भी एडवांस आयुर्वेद एक विषय के रूप में रखा जाये। इससे आयुर्वेद के बेसिक्स को जानने वाले लोग सभी क्षेत्रो मे मिलेंगे और विचारो का आदान प्रदान आसानी से हो पायेगा।
आयुर्वेद विशेषज्ञो को अन्य क्षेत्रो मे भी स्थान दिया जाये जैसे वन विभाग, कृषि विभाग, चिकित्सा पर्यटन आदि मे।
आयुर्वेद मे प्रवेश लेने आये छात्रो के भविष्य को और भी आकर्षक बनाने के लिये रेलवे, सेना, वन विभाग आदि केंद्रिय संस्थाओ मे स्थान आरक्षित किये जाये।
सम्पूर्ण विश्व मानवता के रक्षक आयुर्वेद की ओर आशा भरी निगाहो से देख रहा है । आयुर्वेद चिकित्सक सभी क्षेत्रो मे अपनी सेवाए देने को और चुनोतियो को टक्कर देने के लिये तैयार खडे है । ऐसे मे आयुर्वेद चिकित्सको को अवसर देने के साथ- साथ उनकी समस्याओ का निराकरण करना भी रोगीयो की सेवा करने जैसा ही है ।
Nice Article about Ayuerveda
On of the best article about Ayurveda,keep it up sir🙏🙏🙏
डाक्टर साहब आपने सही लिखा है एक दो का मैने दिमाग बदला भी है।परन्तु ये करना बहुत जरूरी है।आपको अपनी पैथी पर विश्वास जरूरी है