रक्तदान महादान
आप अगर रक्तदान करने की सोच रहे हैं तो इसके फायदों में एक और फायदा जोड़ लीजिए जी हां रक्तदान न केवल किसी का जीवन बचाता है वरन आपकी हेल्थ में अर्थात आपके स्वास्थ्य में सुधार भी करता है। बस जरूरत है कुछ खास सावधानियों की; जिन्हें रक्त देने से पहले और रक्त देने के बाद अपनाया जाए, तो आपका यह महादान मैं केवल आपके शरीर को स्वस्थ रखेगा वरन कई सारी बीमारियों को ठीक भी कर देगा और साथ ही किसी दूसरे के जीवन को बचाने में भी काम आएगा।
रक्तमोक्षण को एक चिकित्सा विधि के रूप में आयुर्वेद में वर्णित किया गया है हमारे ऋषि मुनि रक्त स्राव की कई विधियां और उससे संबंधित यंत्रों का वर्णन अपने आयुर्वेद शास्त्रों में किया हैं। इसके अलावा रक्तस्रावण के पूर्व कर्म एवं पश्चात कर्म का विस्तृत वर्णन आयुर्वेद ग्रंथों में किया गया है, जिसको अपना कर कहीं भयानक रोगों से मुक्ति पाई जा सकती है।
कुछ बातें जिनका रक्तदान के समय ध्यान रखना चाहिए
- ब्लड डोनेशन या रक्तदान इसी आयुर्वेदिक विशेषज्ञ या आयुर्वेदिक चिकित्सक की देखरेख में करवाएं ताकि जो लाभ रक्त स्रावण के हैं, वह सभी आपको मिल पाए।
- इसके अतिरिक्त जो कुछ भी आयुर्वेद चिकित्सक आपको निर्देश दें जैसे पूर्व कर्म हेतु दिये गये डाइट चार्ट को जरूर फॉलो करें अर्थात जो भी खाना है वह आयुर्वेद चिकित्सक की सलाह से ही खाएं।
- जिस दिन आपको रक्तदान करना है, उस दिन किसी प्रकार की चिंता या तनाव नहीं रखें, उसकी पूर्व रात्रि को रात्रि जागरण नहीं करें।
- जहा तक हो वात प्रकोपक कारणों से बचे।
पश्चात कर्म में आपको संपूर्ण सन्सर्जन कर्म का पालन करें एवं आयुर्वेदिक चिकित्सक द्वारा दी गई डाइट चार्ट को फॉलो करें।
उपरोक्त नियमों को पालन करके देखें कि कैसे आप का किया हुआ दान न केवल किसी का जीवन बचाता है, बल्कि आपको भी कहीं रोगों से मुक्त कर देता है।
उच्च रक्तचाप या हाई blood pressure, त्वक विकार या स्कीन डिसीस , वात रक्त या गाउट आदि जैसे बीमारियों में रक्तस्रवण से फायदा मिलता है । एक आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह से रक्तस्रवण किया जाए, तो न केवल व्यक्ति को लाभ मिलेगा वरन ब्लड बैंक में रक्त की आपूर्ति भी सुनिश्चित होगी।
आयुर्वेद में विशेषज्ञ अर्थात शल्यतंत्र के MS(Ayu.) को चिकित्सक के रूप में चयन करना अधिक उचित होगा। सामान्य बीएएमएस (BAMS) भी ट्रेनिंग देने पर रक्त स्राव करा सकते हैं, किंतु कोई भी कॉम्प्लिकेशन होने पर उपरोक्त विशेषज्ञ अर्थात शल्यतंत्र के MS(Ayu.) की सलाह ले लेनी चाहिए।
रक्तदान की मात्रा
मात्रा का निर्धारण विशेषज्ञ की सलाह से रोगी की स्थिति पर निर्भर होता है कई बार मात्रा का निर्धारण कई बातों को ध्यान रखकर किया जाता है जैसे उम्र, वजन, प्रकृति एवं रोग की अवस्था आदि बातों को ध्यान में रखकर विशेषज्ञ रक्तदान में दी जा सकने वाली रक्त की मात्रा का निर्धारण करते हैं। क्योंकि अधिक मात्रा में रक्त का स्राव शरीर के लिए हानिकारक हो सकता है। बहुत बलवान व्यक्ति मे या अधिक दोष युक्त होने पर भी अधिकतम मात्रा एक प्रस्थ (640 grams से 768 ग्राम) से ज्यादा नही होनी चहिये।
बलिनो बहुदोषस्य वयःस्थस्य शरीरिणः।
परं प्रमाणमिच्छन्ति प्रस्थं शोणितमोक्षणे ।। सु. शा. 8/16
रक्तमोक्षण के लिए सबसे अनुकूल मौसम
जब न तो बहुत गर्म और न ही बहुत ठंडा मौसम हो तब रक्तमोक्षण चिकित्सा करनी चाहिए।
नैवातिशीते नात्युष्णे न प्रवाते न चाभ्रिते।
सिराणां व्यधनं कार्यमरोगे वा कदाचन।। सु. शा. 8/7
सामान्यत: रक्तमोक्षण के लिये उपयुक्त ऋतु विशेष की बात करे तो शरद ऋतु रक्तमोक्षण के लिये सर्वाधिक उपयुक्त ऋतु होती है अर्थात इस चिकित्सा के लिए उपयुक्त 21 सितंबर से 20 दिसंबर सर्वाधिक उपयुक्त है।
विशेष परिस्थियो मे या रोग की अवस्था मे अन्य ऋतु मे भी रक्तमोक्षण किया जा सकता है किंतु काल का ध्यान रखना चाहिये। जैसे वर्षा ऋतु मे यदि रक्तमोक्षण करना पडे, तो दिन के समय मे जब आकाश मे बादल नही हो तब रक्तमोक्षण करना चाहिये। ग्रीष्म ऋतु मे यदि रक्तमोक्षण करना पडे, तो शीतलता के समय मे अर्थात सुबह के समय मे रक्तमोक्षण करना चाहिये। हेमंत ऋतु मे यदि रक्तमोक्षण करना पडे, तो दोपहर के समय मे रक्तमोक्षण करना चाहिये
व्यभ्रे वर्षासु विध्येत्तु ग्रीष्मकाले तु शीतले।
हेमन्तकाले मध्याह्ने शस्त्रकालास्त्रयः स्मृताः। सु. शा. 8/10
भारत सरकार को चाहिए कि रक्तदान कार्यक्रम किसी भी शल्यतंत्र के विशेषज्ञ चिकित्सक अर्थात MS(Ayu.) की देखरेख में कराया करें ताकि लोगों को दोहरा लाभ मिल सके।
Reference
- https://niimh.nic.in/ebooks/esushruta/?mod=read
- https://medwinpublishers.com/JONAM/bloodletting-and-blood-donation-an-integrative-approach.pdf
- Anand, *Tekade, & Kavita, D. (2018). IMPORTANCE OF RAKTAMOKSHANA IN THE MANAGEMENT OF TVACHAVIKAR. International Journal of Ayurveda and Pharma Research, 6(8). Retrieved from http://www.ijaprs.com/index.php/ijapr/article/view/1025
- Role of Ratktamokhna by Jalukavacharana & siravedahna in the management of vicharchika (Ecema) by Hiren Raval & A.B.Thakar (cited: Ayu 2012 jan-Mar)33(1)68-72, Available https://
www.ncbi.nlm.nih.gov/pmc/articles/PMC3456867/11. Anantram sharma, editor. Suhruta Samhita. Varanasi: Chaukambha Surbharti publication; 2010; page.no.46.
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