प्लास्टिक पाल्युशन (व्यंग)

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मेरे एक् परम मित्र, जो की एलोपैथिक चिकित्सा विज्ञान से जुड़े हुए हैं, एक दिन बड़े गुस्से में मेरे कक्ष में प्रवेश करते हुए कहते हैं “हद कर दी यार तुम लोगों ने।”
मैंने उनको थोड़ा शांत करते हुए पूछा – “अब क्या हो गया मेरे मित्र?”
वह बोले “अरे यार! तुम लोगों का एक ही काम है, दिन-रात एलोपैथी बुराई करना। खाते भी हो और बुराई भी करते हो। सोचो! एलोपैथ नहीं होता तो दुनिया का क्या होता? और आगे की सोचो कि, आज अगर दुनिया से एलोपैथ को हटा दिया जाए, तो दुनिया किं क्या हालत हो जाए?”
मैंने थोड़ा बात को संभालते हुए मित्र को शांत करते हुए मित्रों को कहा “चलो बैठो चाय/ कॉफी लो और फिर डिस्कशन करते हैं।”
मैंने प्लास्टिक के थरमस में से गरम-गरम चाय निकाली और प्लास्टिक के कप मैं उनको चाय सर्व की।
वह फिर गुस्से में आ गए और बोले “तुम लोग समझते क्यों नहीं हो, एक तो गरम-गरम चाय ऊपर से इस प्लास्टिक के कप में डालने से कैंसर होने के चांस बढ़ जाते हैं।”
मैंने बोला “सॉरी सॉरी , मैं भूल गया था कि तुम प्लास्टिक का विरोध करते हो। और यह सही भी है, मैं इस लड़ाई में तुम्हारे साथ ही हु।”
यह कहते हुए मेने प्लास्टिक का कप फेका और मैंने अब की बार उनको स्टील के कप में चाय सर्व की और अब वो चाय पीते हुए मेरी ओर देखते हुए मेरी बात सुनने लगै।
मैंने भी अपनी बात कहना चालू रखा।
मैंने उन्हें कहा कि “क्या तुमने कभी प्लास्टिक का विरोध करते हुए यह सोचा की प्लास्टिक बनाने वाले कितने उद्योगों को या कितनी इंडस्ट्रीज को तुम्हारे इस विरोध का नुकसान हो सकता है? क्या तुमने कभी उन लोगों का पक्ष जानने की कोशिश की?
अबकी बार वह फिर से उग्र हो गए और बोले “क्या तुम प्लास्टिक वालों की तरफ हो? दुनिया को हो रहे नुकसान का सोचो। प्लास्टिक कितना पॉल्यूशन बढ़ा रहा है।”
मेने बात सम्हालते हुए कहा “नही मित्र में तो घोर प्लास्टिक विरोधी हु।
पर यह सब तो में इस लिए कर रहा हू क्योंकि एक दिन मेरे पास एक प्लास्टिक उद्योग के मित्र आए थे।
उनका कहना था कि प्लास्टिक के बिना हमारा एक भी काम नही चल सकता, वो आपके लिए भी कह रहे थे कि आपके इलाज के लिए संसाधनों में कितना प्लास्टिक यूज करते हो। आधुनिक हेल्थ उद्योग का प्लास्टिक के बिना काम नहीं चल सकता और फिर भी दिन रात प्लास्टिक की बुराई करते हो।
अब उनकी बारी थी वो बोले “गलत तो गलत ही रहेगा भले ही वो वर्तमान में कितना भी उपयोगी हो किंतु भविष्य में तो समस्या पैदा करने वाला है। इसको बंद नहीं करने की मजबूरी है तो कम से कम प्रयोग को तो मिनीमाइज कर ही सकते है।”
मेने उनकी हा में हा मिलाते हुए कहा “जी ! आप बिलकुल सही कह रहे है।
पर बस इसी सोच को आपको चिकित्सा उद्योग में भी अपनाना चाहिए और जिन रासायनिक द्रव्यों से शरीर और वातावरण प्रदूषण बढ रहा है उन दवाओं को बनाने वाली फेक्टिरियो से भी वैसे ही प्रदूषण बढ़ता है जैसे प्लास्टिक उद्योग से। जैसे मेने अभी प्लास्टिक के ग्लास को फेक दिया वैसे ही आप अपने सर्वश्रेष्ठ होने के अहंकार को छोड़ दीजिए और अमृततुल्य आर्युवेद को अपनाए।
वास्तिविक रूप से वातावरण को और शरीर (अपने और प्रत्येक प्राणी ) को मनुष्य जनित रासायनिक पदार्थ के प्रदूषण से बचाएं

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