बहुत पुरानी बात है, एक बार एक शहर में एक बहुमाली इमारत बनने की तैयारी चल रही थी। इस इमारत को बनाने के लिए विशेष मजबूत नींव बनाने की जरूरत थी। उसके लिए जो कारीगर मंगाए गए थे वे प्राचीन ज्ञान से संपन्न थे और प्राचीन साधनों के साथ नींव निर्माण कर रहे थे। अब जब इमारत की पहली मंजिल बनने को आई, तो नींव बनाने वाले कारीगर खुश थे कि उन्हें भी पहली मंजिल को देखने का मोका मिलेगा, वहा पर रहने को मिलेगा, किंतु जिन नए इंजीनियरो ने पहली मंजिल बनाई उन्होंने नींव निर्माण के महत्व को ही छुपा दिया। उनका कहना था ” क्योंकि नींव सामने देखती नही और जो दिखता नहीं वो बिकता भी नहीं, इसलिए नींव निर्माण का इमारत के बिकने मैं कोई महत्व नहीं, लिहाजा, नींव वाले कारीगरों के महत्व को पहली मंजिल वाले कारीगरों ने छुपा दिया, नकार दिया और भुला दिया और तो और उनको तो यह तक कहां गया कि वह अपनी नींव तक सीमित रहें। अपनी सीमाओं से बाहर आने की कोशिश ना करें । जो बरसों से नींव रहता है उसे कोई अधिकार नहीं है कि ऊपर आकर पहली मंजिल पर रहे।
धीर धीरे समय प्रसार हुआ, अब धीरे-धीरे दूसरी मंजिल बनी फिर तीसरी मंजिल बनी इस तरह बहुमांली मंजिल पूरी तरह तैयार हो गई। पहली मंजिल वाला आखिरी मंजिल तक आ सकता है और आखरी मंजिल वाला पहली मंजिल तक आ सकता है। पर नींव वाले को नींव में ही रहना है। वह उपर नहीं आ सकता। ऊपर आएगा तो नींव की प्राचीनता और इमारत की मजबूती सबके सामने आ जाएगी। इसलिए नींव वालो को नींव में ही रहना चाहिए। सबके सामने नहीं आना चाहिए और यह सच्चाई भी सबके सामने नहीं आनी चाहिए कि नींव को बनाने वाले कारीगर प्राचीन थे। और क्योंकि नए कारीगरों से इतनी भारी इमारत के लिए नींव तैयार नहीं हो सकी इस लिए प्राचीन कारीगरों की सहायता ली गई थी।
अगर लोगों को यह पता चले की नींव का काम ऊपरी इमारत से अधिक महत्व का है और वह प्राचीन कारीगरों ने ही किया है तो इससे नवीन कारीगरों की जग हंसाई हो सकती है।
बस इसीलिए नवीन कारीगर अपनी सारी कारीगिरी को उस नींव को छुपाने में लगाते हैं जिसके ऊपर उनकी सारी इमारत खड़ी है।
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